- Download 17
- File Size 380.22 KB
- File Count 1
औपनिवेशिक भारत में शिक्षा का प्रसार और उसका सांस्कृतिक प्रभाव
डॉ. प्रियेश कुमार
(प्रा. भा. इ. स. एवं पुरातत्व विभाग)
तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय भागलपुर
सारांश :
"औपनिवेशिक भारत में शिक्षा का प्रसार और उसका सांस्कृतिक प्रभाव" विषय पर यह शोध भारत के उपनिवेशी काल के उस परिवर्तनशील दौर की पड़ताल करता है जब शिक्षा केवल ज्ञान प्राप्ति का माध्यम न रहकर राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विमर्श का उपकरण बन गई थी। ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने जब भारत में आधुनिक शिक्षा व्यवस्था लागू की, तो उसका उद्देश्य भारतीय समाज को अपने प्रशासनिक ढांचे के अनुकूल प्रशिक्षित करना था। प्रारंभ में यह शिक्षा सीमित वर्गों तक ही सिमटी रही, खासकर उच्च जातियों और संपन्न तबकों के बीच। लेकिन धीरे-धीरे यह शिक्षा जनसामान्य में भी प्रसारित हुई और इसी प्रसार ने भारतीय समाज में गहरे सांस्कृतिक परिवर्तन को जन्म दिया।
यह शोध इस बात को रेखांकित करता है कि औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली ने एक ओर भारतीय भाषाओं, परंपरागत ज्ञान और मूल्यों को पीछे धकेला, वहीं दूसरी ओर आधुनिक वैज्ञानिक सोच, आलोचनात्मक दृष्टि और राष्ट्रवादी चेतना को भी जन्म दिया। यह दोधारी प्रक्रिया थी, जिसमें भारतीय समाज ने जहां एक ओर औपनिवेशिक मानसिकता को आत्मसात किया, वहीं दूसरी ओर उसी शिक्षा ने स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं और विचारकों को प्रेरित किया। बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ ठाकुर, आंबेडकर जैसे अनेक नेताओं ने औपनिवेशिक शिक्षा के प्रभावों का विश्लेषण कर उसे भारतीय समाज के हित में मोड़ने की कोशिश की।
शोध का महत्व इस बात में है कि यह शिक्षा को केवल औपनिवेशिक नियंत्रण का माध्यम न मानकर उसे सांस्कृतिक संघर्ष और सामाजिक जागरण का एक मंच मानता है। यह अध्ययन दर्शाता है कि कैसे औपनिवेशिक शिक्षा के माध्यम से नवजागरण, सामाजिक सुधार आंदोलन और राष्ट्रवाद ने आकार लिया। प्रमुख निष्कर्ष यह बताते हैं कि यद्यपि औपनिवेशिक शिक्षा का आरंभिक उद्देश्य भारतीय मानस को नियंत्रण में रखना था, परंतु दीर्घकाल में यही शिक्षा भारतीय जनमानस में प्रश्न पूछने, परंपराओं की समीक्षा करने और आधुनिक मूल्यों को अपनाने की चेतना का स्रोत बनी। इस प्रकार, यह शोध औपनिवेशिक भारत की शिक्षा प्रणाली को केवल सत्ता के उपकरण के रूप में नहीं, बल्कि सांस्कृतिक परिवर्तन और राष्ट्रनिर्माण की प्रक्रिया के एक जटिल घटक के रूप में प्रस्तुत करता है।
मूल शब्द : औपनिवेशिक शिक्षा,सांस्कृतिक प्रभाव, उपनिवेशवाद,राष्ट्रवादी चेतना, नवजागरण, परंपरागत ज्ञान