गोखले और गांधी: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बैचारिकी के दो ध्रुव का समन्वय
काजल कुमारी
शोध छात्रा
पंजीयन संख्या : 591/2022
स्नातकोत्तर राजनीति विज्ञान विभाग
ति. मां. भा. वि. वि. भागलपुर
सारांश
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अनेक विचारधाराओं, प्रवृत्तियों और रणनीतियों का संगम था। इस संग्राम में दो प्रमुख वैचारिक धाराएँ विशेष रूप से उभरकर सामने आती हैं—गोपाल कृष्ण गोखले का सुधारवादी दृष्टिकोण और महात्मा गांधी का सत्याग्रही दृष्टिकोण। यद्यपि दोनों नेताओं का अंतिम उद्देश्य भारत की स्वतंत्रता था, किन्तु दोनों की रणनीति, साधन और दृष्टिकोण भिन्न थे। यह शोध आलेख इन दोनों विचारधाराओं की तुलनात्मक विवेचना करता है और उनके प्रभावों की ऐतिहासिक भूमिका को रेखांकित करता है।
गोपाल कृष्ण गोखले एक उदारवादी नेता थे, जिन्होंने संवैधानिक सुधार, विधायी परिषदों में भागीदारी, ब्रिटिश सरकार से संवाद और शांतिपूर्ण उपायों के माध्यम से राजनीतिक सुधारों की वकालत की। उन्होंने सामाजिक सुधार, शिक्षा और आर्थिक न्याय को प्राथमिकता दी और भारतीय समाज को दीर्घकालिक परिवर्तन के लिए तैयार करने पर बल दिया। उनकी रणनीति मुख्यतः शिक्षित मध्यवर्ग और संस्थागत सुधारों के इर्द-गिर्द केंद्रित थी। वहीं महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को जनता का आंदोलन बनाया। उनका मार्ग सत्याग्रह, अहिंसा, असहयोग और सविनय अवज्ञा पर आधारित था। उन्होंने नैतिक बल और आत्मबल को राजनीतिक संघर्ष का केंद्र बनाया और स्वराज की तत्कालिक माँग के साथ जनजागरण, ग्रामीण आत्मनिर्भरता और सामाजिक समरसता को भी आंदोलन का अंग बनाया। गांधी ने ब्रिटिश सत्ता की नैतिक वैधता को ही नकार दिया और उसे जनबल से चुनौती दी। यद्यपि दोनों नेताओं के दृष्टिकोणों में स्पष्ट अंतर था—एक ओर विधायी सुधार और व्यवहारवाद, तो दूसरी ओर जनसंघर्ष और नैतिक आध्यात्मिकता—फिर भी उनके बीच गहरा परस्पर सम्मान और संवाद बना रहा। गांधी ने गोखले को अपना राजनीतिक गुरु कहा और उनके सुधारवादी दृष्टिकोण से प्रेरणा ली।
इस शोध आलेख में यह भी प्रतिपादित किया गया है कि सुधारवाद और सत्याग्रह को विरोध नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक के रूप में देखा जाना चाहिए। गोखले ने जहां राजनीतिक चेतना और संस्थागत सोच की नींव रखी, वहीं गांधी ने उस चेतना को व्यापक जनांदोलन और नैतिक बल से सशक्त किया। गोखले और गांधी की विचारधाराएँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दो ऐतिहासिक धाराएँ हैं, जिन्होंने एक साथ मिलकर भारत के राजनीतिक भविष्य की दिशा निर्धारित की। इन दोनों की युगानुकूल भूमिका ने न केवल स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया, बल्कि स्वतंत्र भारत के लोकतांत्रिक, नैतिक और विवेकशील चरित्र की भी आधारशिला रखी।
मूल शब्द (Keywords) : सुधारवाद , सत्याग्रह, उदारवाद, असहयोग,समाजसुधार,अहिंसा,स्वराज, जनआंदोलन, राजनीतिक गुरु, नैतिक बल, विधायी परिषद, सत्याग्रह , संस्थागत राजनीति, सामाजिक सुधार , स्वतंत्रता संग्राम