मस्तिष्क से मेज तक: सोचने, डिज़ाइन करने और प्रिंट करने की असली यात्रा

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  • Create Date 20/07/2025
  • Last Updated 20/07/2025

मस्तिष्क से मेज तक: सोचने, डिज़ाइन करने और प्रिंट करने की असली यात्रा

गाइड नाम – डॉ. अनु देवी (सहायक प्रोफेसर)

शोधकर्ता – तनिशी गोयल (एम.एफ.ए. एप्लाइड आर्ट्स की छात्रा)

डॉ. मनोज धीमान (निदेशक)
श्रीमती मीनाक्षी (एचओडी)
श्रीमती बिन्नू पुंडीर (सहायक प्रोफेसर)

श्रीराम कॉलेज, मुज़फ्फरनगर

सारांश
डिज़ाइन की असली यात्रा दिमाग़ में जन्मी एक सोच से शुरू होकर प्रिंट पर छपी हुई रचना तक पहुँचती है। यह सिर्फ़ एक कला नहीं, बल्कि एक सोच-समझ कर किया जाने वाला क्रमबद्ध काम है, जिसमें रचनात्मकता, तकनीकी जानकारी और प्रैक्टिकल समझ का मेल होता है।

इस शोध में मैंने इस पूरी प्रक्रिया को तीन मुख्य हिस्सों में बाँट कर समझाया है – विचार , डिज़ाइनिंग और प्रिंटिंग। इसमें यह देखा गया कि कैसे एक विचार आकार पाता है, डिजिटल टूल्स से सजीव बनता है और अंत में प्रिंट के रूप में सबके सामने आता है।
यह रिपोर्ट इस बात को भी बताती है कि एक अच्छा डिज़ाइनर सिर्फ़ कलाकार नहीं होता, बल्कि शोधकर्ता, योजनाकार और समस्या का हल निकालने वाला भी होता है। मेरा उद्देश्य इस अध्ययन से यह दिखाना है कि रचनात्मकता और तकनीकी ज्ञान मिलकर कैसे सोच को वास्तविकता में बदलते हैं।

की-वर्ड्स :- डिज़ाइन थिंकिंग, ग्राफ़िक डिज़ाइन, विचार विकास, डिजिटल डिज़ाइन, प्रिंटिंग प्रक्रिया, विज़ुअल कम्युनिकेशन, रचनात्मक प्रक्रिया


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