संगीत और मानसिक स्वास्थ्य: संगीत शिक्षण के माध्यम से तनाव प्रबंधन और भावनात्मक संतुलन
मो0 रियाज
शोधार्थी
स्नातकोत्तर संगीत विभाग
तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर-812007 (बिहार)
शोध-सारांश
भारतीय शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत, और आधुनिक संगीत शैलियों के शिक्षण की प्रक्रिया न केवल कला के रूप में बल्कि मानसिक कल्याण के उपकरण के रूप में भी महत्वपूर्ण है। यह आलेख संगीत शिक्षण के माध्यम से तनाव प्रबंधन और भावनात्मक संतुलन के विभिन्न आयामों को संक्षेप में प्रस्तुत करता है, जो शैक्षिक, मनोवैज्ञानिक, और चिकित्सीय दृष्टिकोणों पर आधारित है। संगीत शिक्षण तनाव प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संगीत की ताल, स्वर, और लय मस्तिष्क के लिम्बिक सिस्टम को प्रभावित करते हैं, जो भावनाओं और तनाव के नियमन से संबंधित है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में राग जैसे राग भैरवी, यमन, और दरबारी के अभ्यास से मस्तिष्क में डोपामाइन और सेरोटोनिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर का स्राव बढ़ता है, जो तनाव और चिंता को कम करने में सहायक हैं। संगीत शिक्षण के दौरान रियाज, स्वर साधना, और ध्यान-आधारित अभ्यास मन को शांत करते हैं और एकाग्रता को बढ़ाते हैं। यह प्रक्रिया न केवल तनावमुक्ति प्रदान करती है, बल्कि आत्मविश्वास और मानसिक स्पष्टता को भी बढ़ावा देती है। संगीत शिक्षण बच्चों, किशोरों, और वयस्कों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, जैसे अवसाद, चिंता, और तनाव, को कम करने में प्रभावी है। समूह-आधारित संगीत शिक्षण, जैसे कोरल सिंगिंग या संगीतमय कार्यशालाएँ, सामाजिक जुड़ाव को बढ़ावा देती हैं, जिससे अकेलापन और तनाव में कमी आती है। इसके अतिरिक्त, संगीत शिक्षण में माइंडफुलनेस और ध्यान की प्रथाएँ शामिल होती हैं, जो व्यक्ति को वर्तमान क्षण में जीने और तनावपूर्ण विचारों से मुक्ति पाने में सहायता करती हैं। संगीत शिक्षण तनाव प्रबंधन और भावनात्मक संतुलन के लिए एक समग्र और प्रभावी उपकरण है। यह मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के साथ-साथ आत्मिक शांति और रचनात्मकता को बढ़ावा देता है। आधुनिक तकनीक और परंपरागत शिक्षण पद्धतियों का समन्वय इस क्षेत्र में नई संभावनाएँ खोल रहा है, जिससे संगीत शिक्षण का महत्व और व्यापक हो रहा है।
शब्दकुंजी: संगीत शिक्षण, मनोवैज्ञानिक, अवसाद, चिंता और तनावपूर्ण विचार इत्यादि