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समाजवादी चिंतक के रूप में जवाहरलाल नेहरू
लालू यादव
शोध छात्र
पंजीयन संख्या : 708/2022
स्नातकोत्तर राजनीति विज्ञान विभाग
ति. मां. भा. वि. वि. भागलपुर
सारांश:
यह आलेख भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू को एक समाजवादी चिंतक के रूप में विश्लेषित करता है। नेहरू का समाजवाद भारतीय परिस्थितियों, सांस्कृतिक विविधताओं और लोकतांत्रिक परंपराओं के अनुरूप विकसित एक व्यावहारिक विचारधारा थी। वे न तो कट्टर मार्क्सवादी थे और न ही पश्चिमी समाजवाद के अंध अनुयायी, बल्कि उन्होंने भारतीय समाज की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक लोकतांत्रिक समाजवाद की संकल्पना प्रस्तुत की। नेहरू का समाजवादी दृष्टिकोण मुख्यतः आर्थिक समानता, सामाजिक न्याय, वैज्ञानिक चेतना और राज्य की कल्याणकारी भूमिका पर आधारित था। उन्होंने समाजवाद को केवल एक आर्थिक नीति न मानकर एक सामाजिक और नैतिक प्रतिबद्धता के रूप में देखा। उनके अनुसार, जब तक समाज में गरीबी, असमानता और शोषण रहेगा, तब तक वास्तविक लोकतंत्र संभव नहीं। इसीलिए उन्होंने समाजवाद को लोकतांत्रिक प्रणाली के भीतर ही लागू करने की आवश्यकता महसूस की। नेहरू के समाजवादी मॉडल की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता थी—वर्ग संघर्ष के स्थान पर वर्ग समन्वय पर बल। उन्होंने श्रमिक, किसान, व्यापारी और उद्योगपतियों के बीच संघर्ष के बजाय सहयोग और समन्वय को प्राथमिकता दी। उनका मानना था कि सभी वर्गों के सहयोग से ही राष्ट्र का समग्र विकास संभव है। यही कारण था कि उन्होंने मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों की भूमिका सुनिश्चित की गई। नेहरू ने औद्योगीकरण को समाजवाद की रीढ़ माना। उन्होंने भारी उद्योगों, सार्वजनिक उपक्रमों और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भर भारत की नींव रखी। योजनाबद्ध विकास प्रणाली, पंचवर्षीय योजनाएँ और सार्वजनिक वितरण प्रणाली उनके समाजवादी दृष्टिकोण के व्यावहारिक रूप थे।
हालाँकि उनके मॉडल की कुछ सीमाएँ भी थीं—जैसे सार्वजनिक क्षेत्र की अक्षमता, कृषि क्षेत्र की उपेक्षा, और अत्यधिक केंद्रीकरण। इसके बावजूद, यह अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि नेहरू का समाजवाद भारत के लिए एक नैतिक, वैचारिक और व्यावहारिक मार्गदर्शन था, जिसने स्वतंत्र भारत की नीतियों और संस्थाओं को दिशा दी।
मूल शब्द (Keywords) : समाजवादन , लोकतांत्रिक समाजवादमिश्रित अर्थव्यवस्था, समन्वय, औद्योगिक विकास, पंचवर्षीय योजना ,राज्य की कल्याणकारी भूमिका, सार्वजनिक क्षेत्र,आर्थिक समानता,सामाजिक न्याय ,विकासशील राष्ट्र ,विचारधारा ,समाज , आधुनिकीकरण